हाईकोर्टों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल में कई रुकावटें : CJI रमना
सीजेआई (Chief Justice of India) एन. वी.रमण (NV Ramana) ने शनिवार को कहा कि देश के संबंधित उच्च न्यायालयों (High Courts) में स्थानीय (क्षेत्रीय) भाषाओं के इस्तेमाल के संबंध में ‘कुछ अवरोध' हैं. हालांकि, उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (Artificial Intelligence) सहित विभिन्न वैज्ञानिक नवाचारों की मदद से यह मुद्दा ‘निकट भविष्य' में सुलझ जाएगा. मद्रास उच्च न्यायालय के नौ-मंजिले प्रशासनिक खंड की आधारशिला रखने के बाद अपने सम्बोधन में न्यायमूर्ति रमण ने यह भी कहा कि तमिल देश के सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों के संरक्षण में हमेशा अग्रणी रहे हैं. उन्होंने तमिलनाडु में साठ के दशक में हिन्दी-विरोधी आंदोलन का स्पष्ट उल्लेख किया.
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उच्च न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल को लेकर न्यायमूर्ति रमण की यह टिप्णी उस वक्त आयी जब कार्यक्रम में मौजूद मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन ने मद्रास उच्च न्यायालय में तमिल भाषा के इस्तेमाल की अनुमति देने का सीजेआई से आग्रह किया. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘समय-समय पर देश के विभिन्न हिस्सों में संविधान के अनुच्छेद 348 के तहत उच्च न्यायालयों में क्षेत्रीय भाषाओं के इस्तेमाल की मांग होती रहती है. इस विषय पर व्यापक बहस हो चुकी है. कुछ व्यवधान हैं, जिसके कारण उच्च न्यायालयों में स्थानीय भाषाओं के इस्तेमाल की अनुमति नहीं दी जा रही है. मैं आश्वस्त हूं कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में नवाचार के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसी तरक्की के बल पर निकट भविष्य में उच्च न्यायालयों में (क्षेत्रीय) भाषाओं के इस्तेमाल से संबंधित कुछ मुद्दे सुलझ जाएंगे.''
सीजेआई ने न्यायिक संस्थानों को सशक्त बनाने को ‘शीर्ष प्राथमिकता' देने का उल्लेख करते हुए कहा कि संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखना और लागू करना न्यायपालिका का उत्तरदायित्व है. उन्होंने कहा, ‘‘संवैधानिक मूल्यों को बरकरार रखना और लागू करना हमारा दायित्व है. निस्संदेह यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है, लेकिन इस जिम्मेदारी को उठाने का जिम्मा हमने शपथ लेने के साथ ही खुशीपूर्वक स्वीकार किया है. इसलिये न्यायिक संस्थानों को मजबूत करना मेरी शीर्ष प्राथमिकता है.''
चेन्नई की प्रशंसा करते हुए सीजेआई ने कहा कि यह देश की सांस्कृतिक राजधानियों में से एक है, जहां समृद्ध परम्पराएं, कला, वास्तुशिल्प, नृत्य, संगीत और सिनेमा आम आदमी के जीवन में गहराई तक समाये हुए हैं.
न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘तमिल अपनी पहचान, भाषा, खानपान और संस्कृति पर गर्व करते हैं. वे सांस्कृतिक और भाषाई अधिकारों की रक्षा में अग्रणी रहे हैं. आज भी जब हम लोग भारत में भाषाई विविधता के बारे में विचार करते हैं तो तमिल लोगों के संघर्ष हमारे दिमाग में जरूर आते हैं.''
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