स्टडी में दावा- टोंगा के समुद्र में फटा ज्वालामुखी था 140 साल का सबसे बड़ा विस्फोट

बताया जाता है कि सीमाउंट में कई हफ्तों की एक्टिविटीज के बाद यह विस्फोट हुआ। न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी (CTBT) का पालन करने के लिए लगाए गए डिटेक्टरों ने इस विस्फोट से हुए सिग्नलों को नोटिस किया। बताया जाता है कि इससे जो ऊर्जा निकली थी, वह 100 हिरोशिमा बमों के स्केल के बराबर थी।
टोंगा में जब पानी के नीचे ज्वालामुखी फटा, तो उसने हमारे वायुमंडल की तीसरी लेयर मेसोस्फीयर से टकराने के लिए गैस और पार्टिकल्स के एक ग्रुप को रिलीज किया। यह अबतक दर्ज किया गया सबसे बड़ा ज्वालामुखीय प्लम सैटेलाइट था।
जर्नल साइंस में प्रकाशित अपनी स्टडी में रिसर्चर्स के पहले ग्रुप ने खुलासा किया है कि 15 जनवरी की इस घटना ने बड़ी संख्या में वायुमंडलीय तरंगों को पैदा किया। टोंगा ज्वालामुखी से जो प्रेशर निकला वह, साल 1883 के क्राकाटाऊ विस्फोट के बराबर था। यह 1980 के माउंट सेंट हेलेंस विस्फोट से भी ज्यादा था। दूसरी स्टडी में कहा गया है कि इस प्रेशर न सिर्फ हमारे वातावरण में परेशानी पैदा की, बल्कि समुद्र को भी हिला दिया।
पानी के अंदर ज्वालामुखी फटने का शोर अलास्का तक सुना गया था। इस विस्फोट से उफनाए समुद्री तूफान ने जापान और अमेरिका के तटीय इलाकों में बाढ़ के हालात पैदा कर दिए थे। पेरू में दो लोगों की मौत हो गई थी। न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया के तटीय इलाकों से भी नुकसान की खबरें आई थीं। बताया जाता है कि ज्वालामुखी में हुए विस्फोट के बाद 22 किलोमीटर ऊपर तक राख और धुएं का गुबार देखा गया था। ज्वालामुखी विस्फोट से जो मलबा निकला, वो समुद्र में समा गया।
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