आर्टिफिशल रेडियोएक्टिविटी की खोजकर्ता Stefania Maracineanu को Google ने किया याद

Google ने आज Doodle के माध्यम से रोमानिया की भौतिकी विज्ञानी स्टेफानिया मारासिनिएनू को याद किया है। आज Google Doodle उनका 140वां जन्मदिन मना रहा है। रेडियोएक्टिविटी के बारे में हम सब जानते हैं। इसकी खोज में मारासिनिएनू का अहम योगदान रहा है। स्टेफानिया ने 1910 में अपनी फिजिकल और केमिकल साइंस की डिग्री पूरी कर ली थी और उसके बाद उन्होंने बुचारेस्ट में लड़कियों के स्कूल में एक टीचर के रूप में पढ़ाना शुरू किया। इसी दौरान उन्हें रोमानिया के विज्ञान मंत्रालय से स्कोलरशिप भी मिली। उसके बाद स्टेफानिया ने पेरिस में रेडियम इंस्टीच्यूट में स्नातिकी शोध करने का फैसला किया। 

रेडियम को मैरी क्यूरी की खोज के रूप में जाना जाता है। उस वक्त रेडियम इंस्टीच्यूट मैरी क्यूरी के निर्देशन में विश्व भर में प्रसिद्ध होता जा रहा था। स्टेफानिया ने भी इसी संस्थान में अपनी रिसर्च करना शुरू किया था। यहां उन्होंने पोलोनियम पर अपनी पीएचडी थिसिस पर काम करना शुरू किया। पोलोनियम की खोज भी मैरी क्यूरी ने ही की थी। 

पोलोनियम की हाफ लाइफ पर शोध करते हुए मारासिनिएनू ने पाया कि इसकी हाफ लाइफ उस धातु पर निर्भर करती है जिस पर यह रखा जाता है। यहां पर वह जानकर हैरान हो गईं कि पोलोनियम से निकलने वाली एल्फा किरणों ने धातु के कुछ परमाणुओं को रेडियो एक्टिव आइसोटॉप में ट्रांसफर कर दिया। उनकी रिसर्च को आर्टिफिशिअल रेडियोएक्टिविटी की खोज कहा गया। 

म्यूडन में एस्ट्रोनॉमिकल ऑब्जर्वेटरी में चार साल तक काम करने के बाद वो रोमानिया लौट आईं और रडियोएक्टिविटी की पढ़ाई के लिए अपनी पहली लैबोरेट्री बनाई। उन्होंने कृत्रिम बरसात का अध्य्यन किया, जिसके लिए उन्होंने अल्जिरिया की एक यात्रा भी की। उन्होंने भूकंपों और बरसात के बीच के संबंध को भी स्टडी किया। उन्होंने सबसे पहले ये बताया था कि एपिकसेंटर में जब रेडियोएक्टिविटी बहुत ज्यादा बढ़ जाती है तो भूकंप आता है। 

1935 में मैरी क्यूरी की बेटी इरेनी क्यूरी और उनके पति को कृत्रिम रेडियोएक्टिविटी की खोज के लिए ज्वॉइंट नोबेल पुरस्कार मिला। मारासिनिएनू ने नोबेल के लिए दावा नहीं किया लेकिन कहा कि इस खोज में उनके योगदान को मान्यता दी जाए। उनकी इस खोज को रोमानिया की साइंस अकादमी ने 1936 में मान्यता दी। जहां पर स्टेफानिया को शोध निर्देशक के रूप में काम करने का अवसर मिला लेकिन विश्व स्तर पर उनको उनकी खोज के लिए कभी पहचान नहीं मिल पाई। 
 

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