एंट्रिक्स-देवास डील को लेकर क्या है विवाद : जानिए 10 बड़ी बातें
जानिए एंट्रिक्स-देवास केस की 10 बड़ी बातें :
देवास मल्टीमीडिया का गठन दिसंबर 2004 में हुआ था. एक साल बाद देवास ने इसरो (ISRO) की कामर्शियल यूनिट एंट्रिक्स के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए. इस डील के तहत देवास को इसरो की वाणिज्यिक शाखा से बैंडविड्थ मिलना था, जिसे विभिन्न सेवाओं में इस्तेमाल किया जाता.
तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने फऱवरी 2011 में यह सौदा उस वक्त रद्द किया, जब यह प्रकाश में आय़ा कि गैरकानूनी तरीके से यह डील की गई थी
एंट्रिक्स ने तब नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल में याचिका दायर कर कहा था कि कंपनी के तत्कालीन चेयरमैन और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों ने गैरकानूनी तरीके से यह समझौता किया था
एनसीएलएटी और नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) की बेंगलुरू शाखा ने मई 2021 में देवास को अपना कारोबार बंद करने का आदेश सुनाया था
देवास और उसकी शेयरहोल्डर देवास एंप्लायीज मॉरीशन प्रा.लि. ने इस आदेश को एनसीएलएटी की चेन्नई शाखा के समक्ष चुनौती दी.
एंट्रिक्स का कहना है कि 2005 के समझौते में भी यह प्रावधान है कि अप्रत्याशित परिस्थितियों में डील को रद्द किया जा सकता है
इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स का यह भी तर्क रहा है कि सीबीआई और ईडी दोनों ने भी एंट्रिक्स और देवास सौदे में धोखाधड़ी का पता लगाया है
देवास लगातार यही कहती रही है कि समझौते के बाद एंट्रिक्स लगातार इनोवेशन की राह में आगे बढ़ी है और ऐसी तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे एंट्रिक्स को बड़ा मुनाफा हो सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अगर एंट्रिक्स और देवास के बीच हुआ वाणिज्यिक समझौता धोखाधड़ी की बुनियाद पर हुआ तो भ्रष्टाचार के इस बीज से निकला हर पौधा जैसे डील, आर्बिट्रेशनल अवार्ड भी इसके दायरे में आते हैं, जो इस धोखाधड़ी से प्रभावित हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने देवास के कारोबार समेटने के निर्देश पर मुहर लगाई
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देवास मल्टीमीडिया केस में अहम फैसला सुनाया था. विशेषज्ञों के मुताबिक, इस निर्णय का दूरगामी असर पड़ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को देवास मल्टीमीडिया की उस अपील को खारिज कर दिया था, जिसमें कंपनी के कारोबार समेटने के आदेश को चुनौती दी गई थी.
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