अमेरिका की बड़ी तैयारी : 2027 तक अंतरिक्ष में न्‍यूक्लियर पावर सिस्‍टम को करेगा टेस्‍ट, यह है मकसद

अमेरिका अपने स्‍पेस प्रोग्राम्‍स को अलग लेवल पर ले जाने के लिए काम कर रहा है। यह देश अब अंतरिक्ष में न्‍यूक्लियर पावर सिस्‍टम्‍स को इस्‍तेमाल करने की योजना बना रहा है। अमेरिका की डिफेंस इनोवेशन यूनिट जिसे DIU के नाम से भी जाना जाता है, वह साल 2027 तक न्‍यूक्लियर पावर्ड प्रोटोटाइप की अंतरिक्ष में टेस्टिंग करने पर काम कर रही है। इसके लिए दो कंपनियों को कॉन्‍ट्रैक्‍ट भी सौंप दिया गया है। DIU ने जिन दो कंपनियों को चुना है, उनमें शामिल हैं एवलांच एनर्जी (Avalanche Energy) और अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर (Ultra Safe Nuclear)। 

रिपोर्टों के अनुसार, इनमें से एवलांच एनर्जी स्‍पेसक्राफ्ट के लिए बिजली क्षमताओं के साथ नेक्‍स्‍ट जेन न्‍यूक्लियर प्रोपल्‍शन का प्रदर्शन करेगी। दोनों कंपनियां मिलकर ऐसे टेस्‍ट सॉल्‍यूशन विकसित करेंगी, जिससे आने वाले समय में छोटे स्‍पेसक्राफ्ट को पृथ्‍वी से चंद्रमा के बीच में ऑपरेट किया जा सके। देश के डिफेंस डिपार्टमेंट को अंतरिक्ष में अपने कार्यक्रम आगे बढ़ाने के लिए ये कंपनियां हाई-पावर पेलोड भी डेवलप करेंगी। 

DIU में न्‍यूक्लियर प्रोपल्‍शन एंड पावर के प्रोग्राम मैनेजर मेजर रयान वीड के मुताबिक, एडवांस्‍ड न्‍यूक्लियर टेक्‍नॉलजी की मदद से अंतरिक्ष कार्यक्रमों में मदद मिलेगी। उन्‍होंने कहा कि अमेरिका इस क्षेत्र में न्‍यूक्लियर टेक्‍नॉलजी में इनोवेशन के लिए स्‍टार्टअप्‍स और अन्‍य कमर्शल कंपनियों को मौका दे रहा है। 

इनके अलावा, अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी NASA और डिफेंस एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी (DARPA)  भी बड़े स्‍पेसक्राफ्ट में न्‍यूक्लियर टेक्‍नॉलजी अपनाने पर काम कर रही हैं। हाल ही में DARPA ने बताया था कि कंपनी परमाणु थर्मल रॉकेट इंजन को असेंबल करने के लिए अपने प्रोजेक्ट डिजाइन के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार है। साल 2026 तक इस इंजन की उड़ान खुद को साबित कर सकती है। 

गौरतलब है कि आने वाले अंतरिक्ष मिशनों में स्‍पेसक्राफ्ट की कक्षा में बदलाव और अन्‍य कामों के लिए अंतरिक्ष यान की क्षमता और विस्‍तार व ज्‍यादा इलेक्ट्रिकल पावर की जरूरत होगी। न्‍यूक्लियर टेक्‍नॉलजी इसका विकल्‍प बन सकती है। यही वजह है कि अमेरिका जैसा बड़ा देश इस ओर कदम बढ़ा चुका है। 

अल्ट्रा सेफ न्यूक्लियर के मुताबिक, वह एक एनकैप्सुलेटेड न्यूक्लियर रेडियोआइसोटोप या एक चार्ज होने योग्य बैटरी पर काम करेगा। इससे स्‍पेस में ऐप्लिकेशंस को पावर मिलेगी। रेडियोआइसोटोप सिस्‍टम की मदद से प्लूटोनियम सिस्‍टम के मुकाबले सिर्फ कुछ किलो ईंधन में 10 गुना ज्‍यादा पावर हासिल की जा सकती है।
 

लेटेस्ट टेक न्यूज़, स्मार्टफोन रिव्यू और लोकप्रिय मोबाइल पर मिलने वाले एक्सक्लूसिव ऑफर के लिए गैजेट्स 360 एंड्रॉयड ऐप डाउनलोड करें और हमें गूगल समाचार पर फॉलो करें।

संबंधित ख़बरें

https://myrevolution.in/technology/%e0%a4%85%e0%a4%ae%e0%a5%87%e0%a4%b0%e0%a4%bf%e0%a4%95%e0%a4%be-%e0%a4%95%e0%a5%80-%e0%a4%ac%e0%a4%a1%e0%a4%bc%e0%a5%80-%e0%a4%a4%e0%a5%88%e0%a4%af%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a5%80-2027-%e0%a4%a4%e0%a4%95/?feed_id=24279&_unique_id=6295ea82e005a

Comments

Popular posts from this blog

Moon Knight Filmed at Iconic Star Wars Episode 9 Location

No Way Home's Oscar Run

First Black Panther 2 Footage Released at CinemaCon